यहाँ हम विस्तार से समझेंगे कि बैंक पैसे कैसे कमाती है, यानी बैंकिंग मॉडल का गहराई से विश्लेषण — सरल भाषा लेकिन शोध-समर्थित विवरण के साथ। नीचे दिए गए बिंदुओं को ध्यान से पढ़ें — हर बिंदु में उस शोध या दस्तावेज़ का संदर्भ भी है, जिससे आप अपनी समझ को और मजबूत कर सकते हैं।
1. जमा-और-उधार मॉडल (Deposit-and-Loan Model)
बैंक आपकी जमा राशि स्वीकार करती है — जैसे बचत खाते, चालू खाते, सावधि जमा आदि। इसके लिए बैंक आपको कुछ ब्याज देती है।
उसी बैंक आपके जमा को अन्य ग्राहकों को उधार देती है (व्यक्ति, कंपनी, गृह ऋण आदि) — उन उधारों पर बैंक अधिक ब्याज लेती है। इस बीच का ब्याज का अंतर (interest spread) बैंक की मूल कमाई का स्रोत बन जाता है।
इसे बैंकिंग में नेट इंटरस्ट मार्जिन (Net Interest Margin, NIM) कहा जाता है — यानी बैंक जितना ब्याज कमाई करती है, उससे बैंक को अपनी लागत चुकानी होती है (जमाओं पर ब्याज, अन्य फंडिंग खर्च) और बची राशि बैंक का लाभ बनती है।
उदाहरण के तौर पर: बैंक जमा पर 4% ब्याज देती है, लेकिन ऋण पर 10% लेती है → अंतर = 6% — यह बैंक की कमाई का हिस्सा बन सकता है।
शोध ने यह स्पष्ट किया है कि बैंक की लाभप्रदता पर इस NIM का बहुत बड़ा प्रभाव होता है। जैसे कि Reserve Bank of Australia के अध्ययन में पाया गया कि प्रति 100 आधार अंक (1%) कमी होने पर NIM लगभग 5 आधार अंक कम हो जाती है।
भारत के संदर्भ में भी अध्ययन हुआ है — जैसे शोध “Impact of Interest Rates Changes on Banking Profitability …” में यह पाया गया कि ब्याज दरों का उतार-चढ़ाव बैंक की लाभप्रदता (ROA, ROE आदि) को प्रभावित करता है।
संक्षिप्त में: बैंक जमा लेती है, उस पर कम ब्याज देती है; उधार देती है, उस पर ज्यादा ब्याज लेती है; यही अंतर बैंक को कमाई देता है।
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2. शुल्क-आधारित आय (Fee-based Income)
बैंक अब सिर्फ ब्याज अन्तर से ही नहीं कमाती — विभिन्न बैंकिंग सेवाओं के लिए शुल्क/फी लेती है। उदाहरण: खाता रखरखाव शुल्क, एटीएम शुल्क, ओवरड्रॉफ्ट शुल्क, लेन-देने वाली सेवा शुल्क, क्रेडिट कार्ड शुल्क आदि।
शोध में यह देखा गया है कि अमेरिका में वगैरा बैंकिंग कंपनियों में गैर-ब्याज आय (non-interest income) बढ़ी है, लेकिन इस पर कुछ भ्रांतियाँ भी पाई गई हैं — जैसे यह कि “फीस-आय ज्यादा स्थिर होती है” यह हमेशा सच नहीं है।
बैंक अपनी रणनीति के अनुसार — जमा-उधार मॉडल + फीस-मॉडल + निवेश-मॉडल (आगे नीचे) अपनाती है। इससे आय के स्रोत अलग-अलग होते हैं और जोखिम भी अलग तरह से होते हैं।
उदाहरण के रूप में: मान लीजिए आपका बैंक खाता खोलने पर शुरुआत में कोई शुल्क नहीं लेता लेकिन साल में खाता रखरखाव हेतु कुछ शुल्क लेता है; यह बैंक के लिए एक स्थिर स्रोत बन सकता है।
संक्षिप्त में: बैंक सेवाओं पर ग्राहकों से फीस लेती है — ये फीस बैंक की कमाई का दूसरा स्त्रोत है।
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3. निवेश एवं अन्य वित्तीय गतिविधियाँ (Investment and Other Financial Activities)
बैंक जमा-उधार मॉडल के अलावा अपनी बैलेंस शीट में संपत्तियाँ (assets) जमा करती है — जैसे बॉन्ड, सरकारी प्रतिभूतियाँ (government securities), अन्य निवेश आदि। इन निवेशों से मिलने वाले रिटर्न से बैंक को आय होती है।
इसके अलावा बैंक लोन को सैक्युरिटाइजेशन (loan को पैकेज कर बाज़ार में बेचना), या अन्य वित्तीय उत्पादों को बाजार में पेश कर सकती है। such activities बैंक को अतिरिक्त कमाई का अवसर देते हैं।
एक महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि बैंक मुद्रासृजन (money creation) में भी भूमिका निभाती है — जब बैंक ऋण देती है, तो उसके खाते में नया जमा बनता है।
हालांकि यह नोट करें कि यह प्रक्रिया बहुत जटिल है और सिर्फ “नए पैसे बनना” नहीं होती — यह केंद्रीय बैंक की नीतियों और बैंक की अपनी गतिविधियों से जुड़ी है।
संक्षिप्त में: बैंक निवेश कर के, और लोन-सिक्युरिटाइजेशन आदि के माध्यम से भी कमाई करती है — सिर्फ जमा-उधार मॉडल ही नहीं।
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4. बैंक पैसे क्यों बना सकती हैं और इसका सिस्टम में क्या मतलब है
पारंपरिक समझ यह थी कि बैंक सिर्फ जमा को उधार देती है — लेकिन शोध में बताया गया है कि आधुनिक बैंकिंग में बैंक स्वयं नए जमा (deposits) बना देती है जब वह ऋण देती है। उदाहरण के लिए Bank of England के शोध लेख में कहा गया: “कमाई गई जमा बैंक द्वारा उधार देने से पहले नहीं होती — बल्कि जब बैंक ऋण देती है, तब जमा उत्पन्न होती है।”
इस प्रकार, बैंकें पैसे पैदा नहीं करतीं (wealth) बल्कि मुद्रा / उधार सृजन करती हैं, जिसे हम बैंकिंग सिस्टम में पैसा की आपूर्ति के रूप में देखते हैं।
इस दृष्टिकोण से, बैंक सिर्फ “इंटरमीडियरी” नहीं हैं (बस पैसे इकत्र कर, उधार देना), बल्कि सक्रिय भूमिका निभाती हैं — इसलिए बैंकिंग प्रणाली, मौद्रिक नीति, एवं आर्थिक विकास के बीच गहरा संबंध है।
संक्षिप्त में: बैंक केवल जमा-उधार नहीं करती, बल्कि आधुनिक अर्थव्यवस्था में पैसा सृजित करती है — इसलिए बैंकिंग की भूमिका अधिक व्यापक है।
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5. जोखिम, व्यय (costs) एवं लाभप्रदता (Profitability) का प्रबंधन
बैंक को अपनी गतिविधियों में जोखिम प्रबंधन करना पड़ता है — जैसे उधार देने में डिफॉल्ट (गैर-निष्पादित लोन / NPA) का खतरा, ब्याज दरों का बदलाव, संचालन लागत (operating costs) आदि।
बैंक जितनी कम लागत में काम करती है, उतनी बेहतर लाभप्रदता रख सकती है — उदाहरण के रूप में, भारत में अध्ययन में यह पाया गया कि बैंक की “कॉस्ट-टू-इनकम” अनुपात जितनी कम होगी, लाभप्रदता उतनी बेहतर होगी।
बैंक व्यवसाय मॉडल (business model) बहुत मायने रखता है — उदाहरण के तौर पर यूरोपीय बैंकिंग सिस्टम में ML-आधारित शोध से पाया गया कि “रिटेल-ओरिएंटेड बैंकिंग मॉडल” ने बेहतर प्रदर्शन किया है, जबकि “अस्पैशालाइज्ड मॉडल” (non-specialised) ने पीछे रहने का रुझान दिखाया है।
साथ ही, ब्याज दरों का उतार-चढ़ाव बैंक पर बड़ी प्रभाव डालता है — निचली ब्याज दरों में बैंक की NIM कम हो सकती है, लेकिन कुछ बैंक इसे लागत नियंत्रण व अन्य उपायों से आंशिक रूप से कम कर पाते हैं।
संक्षिप्त में: बैंक सिर्फ कमाई के स्रोत नहीं अपनाती बल्कि जोखिम, लागत और मॉडल चुनने में भी कुशल होना पड़ता है — तभी स्थिर लाभ कमाती है।
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6. माह-परिवर्ती कारक (Macro-Factors) तथा बैंकिंग पर उनका प्रभाव
बैंक की कमाई पर माह-परिवर्ती आर्थिक स्थिति (macro-economy) प्रभाव डालती है — जैसे केंद्रीय बैंक की ब्याज दरें (repo rate), अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर (GDP growth), मुद्रास्फीति (inflation), बैंकिंग नियम-नीति (regulation) आदि।
उदाहरण के लिए, भारत में जब केंद्रीय बैंक द्वारा रेपो दर कम की जाती है, तो बैंक को जमा-पर ब्याज कम देना होता है लेकिन ऋण-ब्याज भी घटती है — इस कारण बैंक का ब्याज अंतर छोटा हो जाता है। इसके चलते बैंक की NIM सुंकुचन की स्थिति में आ सकती है।
डिजिटलाइजेशन, फिनटेक प्रतिस्पर्धा, तकनीकी निवेश आदि भी बैंक की लागत और रणनीति को प्रभावित करते हैं — जैसे McKinsey & Company की रिपोर्ट कहती है कि ऑपरेटिंग कोस्ट बढ़ते जा रहे हैं, और बैंक को नए टेक्नोलॉजी व AI को अपनाना होगा, अन्यथा मार्जिन दब सकते हैं।
संक्षिप्त में: बैंक की कमाई सिर्फ उसके अंदर नहीं निर्भर करती — बाहरी आर्थिक-सामाजिक-प्रौद्योगिकी कारक भी बराबर भूमिका निभाते हैं।
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7. निष्कर्ष तथा महत्वपूर्ण बिंदु
बैंक पैसे कमाती है मुख्य रूप से जमा-उधार मॉडल के माध्यम से — कम ब्याज पर जमा लेना और अधिक ब्याज पर उधार देना। इसके अलावा, फीस-आय और निवेश-आय महत्वपूर्ण स्रोत हैं।
आधुनिक बैंकिंग में बैंक पैसे (डिपॉजिट्स) सिर्फ जमा को उधार देकर नहीं बनाती — बल्कि जब बैंक उधार देती है, तो नए जमा उत्पन्न होता है।
बैंक की लाभप्रदता इस बात पर निर्भर है कि उसने कौन-सा बिजनेस मॉडल अपनाया है, लागत कितनी है, ब्याज दरें कैसी हैं, जोखिम कितने हैं।
बैंकिंग को चलाने वाले बाहरी कारक महत्वपूर्ण हैं: जैसे ब्याज दरें, डिजिटल प्रतिस्पर्धा, वित्त-नीति, नियामक परिवर्तनों आदि।
इसलिए यदि आप बैंकिंग सेक्टर की समझ रखते हैं, तो यह देखना जरूरी है कि बैंक ने अपना मॉडल कैसे चुना है, उसकी लागत स्ट्रक्चर कैसी है, और वह आर्थिक परिस्थितियों में कैसे ढल रही है।